SANSTHAPAK.

लोकतंत्री धाम के थापक धामिक प्रोफेसर जनार्दन धामिया
लोकतंत्री धाम के थापक धामिक प्रोफेसर जनार्दन धामिया ने विस्तारपूर्वक लोकतंत्री धाम के निधान के अवसर पर बताया है कि स्वाधीन भारत ने अतीत के शास्त्रों के विधान को जीवन के लिए अपरिहार्य वाली स्थिति से बाहर का रास्ता दिखा दिया है | अब यह तो हमारे ऊपर है कि पुराने को हम मानते हैं या अपने लिए कुछ नया रचते हैं | और ऐसे में, धामिक मण्डल ने अब नया रचने का पथ चुना है |

लोकतंत्री धाम की संझवाती :

धामिक मण्डल के किसी सदस्य की देख - रेख में संझवाती का आयोजन अपने घर पर रखा जा सकता है |

धाम की मान्यताओं और मूल्यों में आस्था ही संझवाती रखने का आधार है | संझवाती का आयोजन लेने वाला/वाली अपने आवास पर प्रियजन/आस-पास के लोगों को सायंकालीन बैठकी के लिए आमंत्रित करेगा/करेगी | इस अवसर पर यह गीत सस्वर होना है :-


सांझी भइल हो सांझी भइल सांझी भइल हम दीया जराइब धनिया तेल तूँ बाती द ....


पीढ़ा मचिया लोग बइठि जां, इहै अन्हरिया काटी द .....-
कहि कहि के कुछु बाति बुझाइबि , सुनि सुनि के कुछु समुझब बाति
कहत सुनत में मंतरि मिलिहें , गीत गवनई कटिहें राति | सांझी भइल हो ....

बैठकी वाली जगह पर सबके देखने लायक स्थान पर दीपन के लिए तैयारी रहनी चाहिए | संझवाती में वह दीप जलाना है जो शामील लोगों के इर्द-गिर्द वाले अंधकार को भी दूर करने वाला बने | यह प्रकाश सिर्फ अपने लिए ही नहीं कर लेना है , बल्कि ‘ हँकहो ’ (लोगों को एकत्र करने हेतु दी जाने वाली आवाज ) देते हुए औरों को अपने पास एकत्रित कर लेना है | अपने को अंधकार से निकलने का यह उध्यम औरों को भी प्रकाश में लाने का एक अवसर है | इस संझवाती में अन्नपूर्णा आधार के बीच शाकम्भरी पूरित घड़े के ऊपर दीप में तेल-बाती करके जलाना है | दीप के प्रकाश को अपने अन्तर्भाव वाली स्वर-लहरियों द्द्वारा उन कोनों-अंतरों तक पहुंचा कर झंकृत तथा रोशन कर देना है, जो सदियों के खंदक हैं; अपने भारतीय समाज में खंदक बना दिए गए हैं | दीप जीवन वाले भाव में विभोर-सा होकर ,महादेवी वर्मा जी के ‘दीप-गान’ के साथ खुद को लगा देना है – ‘मधुर-मधुर मेरे दीपक जल ...|..’


DHAM'S STAGES

लोकतंत्री धाम का पूतान्न :
लोकतंत्री धाम के धामिक/धामिया के जीवन का परम एक तरह से ‘पूतान्न’ ही है | धाम का ‘पूतान्न’ अपने खाने की पवित्रता को रचने का एक विधान है | इसके मूल में समझ यह है कि , जब किसी अन्य व्यक्ति को अन्न और जल से तृप्त करने के उपरांत स्वयं के लिए भी अन्न पाने वाली परिपूर्णता बन जाती है तो खाध्य ‘पूतान्न’ हो जाता है | लोकतंत्री धाम की संझवाती आयोजन द्वारा ही इस पूतान्न का अवसर पाया जा सकता है |

लोकतंत्री धाम धारणा :


लोकतंत्री धाम का दीपन एक प्रकार से धाम के आयोजन का आरम्भिक चरण है | ‘लोकतंत्री धाम की उन्न्मनी’ या ‘बातिकी’ अथवा ‘जोगन-गान’ तो कार्यक्रम हैं | इन सबके लिए भी दीपन तो होना ही है| लिए गए आयोजन की पूर्णता ‘लोकतंत्री धाम की धारणा’ के साथ ही सम्पन्न की जाती है | आयोजन करने वाला धामिया आत्मनिवेदन वाले भाव में अपने आमंत्रितों की विदाई ‘धारण’ सोंपते हुए सम्पन्न करता है | वास्तविक अर्थों में, यह लोकतंत्री धाम का ‘संगमनी-उछाह’ है | फलादि कुछ सौपने के साथ ही ‘लोकतंत्री धाम का बुलावा’ आमंत्रितों के लिए देना है |


‘ लोकतंत्री धाम का बुलावा :-’

साथ साथ आओ ,साथ साथ खाओ


साथ साथ खाओ,साथ साथ गाओ
साथ साथ गाओ ,साथ साथ पाओ
साथ से ही होगा सब काम, यही है हमारा पैगाम....